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नज़राना इश्क़ का (भाग : 34)




निमय अब तक फरी को देखने में डूबा हुआ था। यह देखकर फरी लजा गयी, वह सिर झुकाकर विक्रम के पीछे खड़ी हो गयी। जाह्नवी विक्रम की बात सुनकर उसे घूरने में लगी हुई थी, तभी उसका ध्यान छुईमुई सी बनकर खड़ी फरी पर गया।

"सेंध का तो ठीक है लेकिन अपने प्रिय मित्र के महान काम भी देख लो।" जाह्नवी मुँह बनाते हुए चादर खींचते हुए बोली।

"अब क्या किया इसने…?" विक्रम ने जाह्नवी की ओर भौंहे चढ़ाकर देखते हुए पूछा।

"हे भगवान! ये कैसे? ऐसी हालत में आप….!" फरी ने उसके सूजे हाथ को देखा तो दंग रह गयी, हालांकि सूजन कम हो रहा था परन्तु अभी भी काफी फूला हुआ था, ऐसे में हाथ चला पाना बेहद मुश्किल काम था, और दूसरे हाथ में ड्रिप इस तरह लगी थी कि वह चाहकर भी कुछ नहीं कर सकताथा।  फरी को यकीन नहीं हो रहा था कि वो इस हालत में उसका रिप्लाई कर रहा था, क्योंकि एक्सीडेंट में तो हाथ सलामत थे, पर इलाज में उसे नाकाबिल कर दिया दिया होगा ये तो उसने सोचा ही नहीं। वह यह बात उसे बोलने ही वाली थी मगर किसी तरह उसने खुद की जुबान पर कंट्रोल किया।

"अरे कुछ नहीं हुआ! इतना ओवररियेक्ट करने की जरूरत नहीं है। क्यों निमय!"  विक्रम धीरे से हँसते हुए व्यंग्यात्मक लहजे में बोला।

"हाँ यार! वही तो समझा रहा कब से दोनों को, अब देख खाना खा के दवाई भी खा लिया मगर इनकी सुई यहीं अटकी हुई है।" विक्रम को अपनी साइड से बोलता देख निमय शिकायती लहजे में बोला।

"सुई नहीं अटकी है, सुआ पे अटका देना है सीधा तुझे ही, बड़ा आया कुछ नहीं बोलने वाला..! जल्दी ठीक हो जा वरना देख लेना…!" विक्रम मुट्ठी बांधकर उसे मुक्का दिखाते हुए धमकाकर बोला।

"अबे यार! तूने भी पार्टी बदल ली, अबे कम से कम मेरी हालत की तो कदर कर लो यार कोई…!" निमय किसी मासूम बच्चे की भांति शिकायत करता हुआ बोला।

"कौन सी पार्टी? और हां हालत की कदर है जो बेड पर पड़े हुए हो नहीं तो बाहर लिटाकर आता..! भाई इंसानों से भिड़ जाता है अलग बात है अब कार्स और पोल्स से भी भिड़ने लगा? ये कहाँ की होशियारी है यार..!" विक्रम भी पांव पटकते हुए डांट लगाने के स्वर में बोला।

"तुम दोनों की सुई एक ही जगह क्यों अटकी हुई है..!" निमय ने सड़ा सा मुँह बनाते हुए विक्रम और जाह्नवी की ओर देखकर कहा।

"उन्होंने कहा न कि एक्सीडेंट उनकी गलती से नहीं हुई थी, प्लीज कम से कम इस टाइम तो इनसे ऐसे रुडली बातें न करो। अभी इनको ख्याल रखने की जरूरत है!" फरी ने विक्रम को पकड़कर चुप कराते हुए बोली।

"हाँ तुम ही रख लो इनका ख्याल…!" जाह्नवी ने मुँह बिचकाकर उल्टी दिशा में घूमते हुए उसकी ओर पीठ कर  बोली।

"ठीक है, आप दोनों जाओ तब तक थोड़ा बहुत घूम फिर लो, और जाकर पता कर लेना कि इन्हें डिस्चार्ज कब तक मिलेगा!" फरी ने विक्रम को धकेलते हुए कहा।

"जैसी आपकी इच्छा फरी देवी..!" जाह्नवी और विक्रम दोनो ने एक ही साथ कहा।

"लगता है ये दोनों डेढ़ बुद्धि एक ही दिमाग लेकर पैदा हुए थे..!" कहते हुए निमय हँसने लगा। यह सुनकर विक्रम उसको मुक्का दिखाते हुए घुमा, जाह्नवी भी कमर पर हाथ रखे उसे काट खाने वाली निगाहों से घूरने लगी।

"आप भी ज्यादा ना बोलिये, ऐसी हालत में भी बोलना है जनाब को…!" फरी अपने होंठों पर तर्जनी उंगली रखते हुए निमय को चुप रहने का इशारा कर बोली। "अब जाइये आप दोनों, कुछ दिन तो बख्स दीजिये..!" फरी ने हाथ जोड़ते हुए उन दोनों से कहा, दोनों हँसते हुए वहां से बाहर निकल गए।

"मैने कहां कुछ किया.. मैं तो बस…!" निमय ने अपनी सफाई पेश करने की कोशिश की, इससे पहले वह कुछ और बोलता फरी ने उसके होंठो पर तर्जनी उंगली रख दी, निमय ने पहली बार फरी को स्पर्श किया था। उसके तन मन में रोमांच सा फैल गया, दिल जोरों से धड़कने लगा, सांसे जैसे अल्हड़ पुरवाई बनने को बेकरार थी, वह जैसे किसी और ही दुनिया में खो सा गया था। थोड़ी देर बाद जब फरी को यह एहसास हुआ कि उसने क्या किया है तो उसने तुरंत ही अपना हाथ हटाया और तेजी से उठकर उससे दूर खड़ी हो गयी। उसकी निगाहे झुकी हुई थी, वह निमय की ओर नहीं देख पा रही थी जबकि निमय चुपचाप बस उसी की ओर देख रहा था।

"स...सॉरी!" फरी ने अपराधभाव से सिर झुकाए बेहद धीमे स्वर में कहा, उसके स्वर से ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसने कोई बहुत बड़ा अपराध कर दिया हो।

"क...कोई बात नहीं..!" फरी के स्वर ने निमय की तंद्रा को भंग किया, वह हड़बड़ा कर बोला। "इट्स जस्ट ओके!"

"ज...जी!" फरी ने सिर झुकाएं हुए ही बोला।

"बैठ जाओ! मुझे कुछ नहीं हुआ है फरी जी! देखना एक हफ्ते के भीतर एकदम दुरुस्त हो जाऊंगा।" निमय ने मुस्कुराते हुए कहा, हालांकि वह अब भी फरी से बात करने में हिचक रहा था पर वह अपने दिल में छुपी चाहत को छिपा भी नहीं पा रहा था।

"ज..जी!" फरी लड़खड़ाते हुए बोली और फिर उसके पास ही बैठ गयी।

"आप अभी यहां क्यों आयी हो? इतना परेशान न होइये, ठीक हो जाऊंगा!" निमय उसकी आँखों में झांकने की कोशिश करते हुए नर्म स्वर में बड़े प्यार से बोला।

"दोस्त अपने दोस्त के पास क्यों आते हैं निमय जी? क्या आप मुझे अपनी दोस्त मानते हैं? अगर हाँ! तो जो जवाब आपका होगा वही मेरा भी होगा।" फरी धीरे से सिर उठाते हुए निमय को देखकर बोली।

"बेशक..! आप मेरी दोस्त हो…!" निमय ऐसे बोला मानों वह किसी अजीब उलझन में फंस गया हो।

"तो इस सवाल का जवाब दीजिये, जो आपका उत्तर होगा, वही मेरा भी..!" फरी ने इस बार निमय की आँखों में झांककर कहा।

"अं…..!" निमय बुरी तरह उलझन में फंसा हुआ फरी को एकटक देखता रहा।

"क्या हुआ?" फरी ने उसकी आँखों के सामने हाथ फिराते हुए पूछा।

"क.. कुछ नहीं! आपने तो मुझे चुप रहने बोला था न..!" निमय हकलाते हुए अपने बचने का उपाय ढूंढता हुआ उत्तर दिया।

"हाँ तो..! बोल क्यों रहे हो आप?" फरी ने उसे बड़े प्यार से डांटते हुए पूछा। "और हाँ जब हाथ में इतनी सूजन थी तो मैसेज पे बात क्यों कर रहे थे? बता नहीं सकते थे? सच में बेहद लापरवाह हो आप…!" फरी एक के बाद एक सवालों की झड़ी लगाए जा रही थी, निमय बस एकटक उसे देखता रहा। "आपको न खुद की केअर करनी नहीं होती है, पहले ठीक हो जाओ आप फिर बहुत मार लगाउंगी आपको..! इतनी लापरवाही बिल्कुल भी ठीक नहीं है..।" फरी मुँह बनाते हुए अपना शिकायती पुड़िया खोले जा रही थी, मगर निमय का ध्यान जैसे उसकी बातों पर था ही नहीं, वह तो उसकी आँखों में डूबा हुआ था, उसे बस फरी के हिलते हुए होंठ दिखाई दे रहे थे। ऐसा लग रहा था मानो जैसे सबकुछ रुक सा गया हो, वह लगातार मुस्कुराते हुए फरी को देखते जा रहा था। डाँटते हुए फरी गुस्से में बहुत प्यारी लग रही थी, निमय सबकुछ भूलकर उसे देखता रहा, मानो वह इस लम्हें को अपनी आँखों में कैद कर लेना चाहता हो, अब तक फरी निमय के बेहद पास आ चुकी थी, दोनों के बीच की दूरी लगभग खत्म सी हो गयी थी, निमय तो जैसे अपने होश गंवाने को बेकरार था। जैसे ही फरी ने निमय को अपने इतने पास देखा वह घबराहट में तेजी से खड़ी होते हुए उससे दूर जाकर खड़ी हो गयी। निमय की प्यासी निगाहें अब भी उस पर ही टिकी थीं, आज वे भी जी भर के जाम पी लेना चाहती थी।

"सॉरी..!" फरी हिचकिचाते हुए सिर झुकाकर बोली, मगर निमय को जैसे कोई होश नहीं था। "मुझे आप के साथ ऐसा बिहेव नहीं करना चाहिए, आई एम रियली सॉरी!"

"क्या हुआ?" फरी की बातें सुनकर निमय जैसे होश में आया, वह अब भी फरी के अपने बिल्कुल पास आने पर हुए एहसास में जी रहा था।

"सॉरी! मैंने गलती की, मुझे आपसे ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए, इसका कोई हक नहीं है मुझे, मुझे माफ़ कर देना प्लीज!" फरी ने सिर झुकाए झुकाए कहा, उसके स्वर में जमाने भर की उदासी थी।

"पागल…!" निमय ने उसकी ओर देखते हुए पुचकारा। "खुद ही दोस्त कहती हो और फिर हक़ की बात करती हो..! आपके पास सभी हक़ हैं…!" निमय मुस्कुराते हुए बोला।

"ठीक है..! अब आप ज्यादा बातें न करो समझें!" आँखे बड़ी कर उस घूरते हुए फरी बोली।

"हूँ…!" निमय ने सड़ा से मुँह बनाया।

"आपको पता है आज आप भी आप आप कर रहे हो..!" फरी ने हंसते हुए निमय को चिढ़ाया।

"हाँ..! क्या…!" निमय ऐसे रियेक्ट किया जैसे वो इस बात से बिल्कुल अनजान हो।

"अभी रेस्ट करो आप..! मैं हूँ यहीं..!" फरी ने उसकी ओर प्यार से देखते हुए कहा।

"गंजा होकर कितना गंदा दिख रहा हूँ न मैं? मुझे तो किसी ने आईना तक न देखने दिया..!" निमय आँखे मूँद कर हँसते हुए कहा।

"नहीं, आप हमेशा अच्छे दिखते हो, और बाल तो आ ही जायेंगे न..!" फरी ने मुस्कुराकर कहा।

"हाँ..!" निमय ने कहा, फरी ने मुस्कुराते हुए अपनी पलके झपकाई। "सुनो..!"

"जी..!" फरी ने निमय की ओर देखा।

"तुम हमेशा ऐसी ही रहना..!" निमय ने मुस्कुराते हुए कहा।

"हमेशा का किसे पता है निमय जी!" फरी ने मुस्कुराकर कहा, यह सुनते ही निमय के चेहरे का रंग उड़ने लगा। "पर जब तक साथ रहूंगी, मैं तो ऐसी ही रहूंगी।" फरी ने चहकते हुए कहा, यह सुनकर निमय के चेहरे की रौनक बढ़ गयी। अरसों बाद यह समय था जब फरी खुद को इतना सामान्य महसूस कर पा रही थी, वह निमय से और बहुत सारी बातें करना चाहती थी, पर उसे पता था कि इस हालत में ज्यादा बातें बिल्कुल ठीक नहीं इसलिए वह चुप रह गयी। दोनों बीच बीच में एक दूसरे को देखते रहते, जिससे उनकी निगाहें मिल जाती और फिर निगाहें ही निगाहों से कई सारी बातें करने लगीं, आज दोनो ही बेहद खुश नजर आ रहे थे।

■■■

जाह्नवी और विक्रम जाकर बाहर वेटिंग रूम में बैठे हुए थे, सुबह होने के कारण वहां भी ज्यादा लोगों की भीड़ नहीं थी। विक्रम जानता था कि जाह्नवी बाहर से खुद को कितना भी खुश दिखा ले पर अंदर से वह भी घायल थी, निमय के शरीर पर लगे जख्म उसे दिल पर लगे होंगे, इस बात को वह बहुत अच्छे से समझता था।

"तुम ज्यादा परेशान न हो जाहू! निम्मी जल्दी ठीक हो जाएगा।" विक्रम ने उसे समझाते हुए कहा।

"हूँ..! पर ये जाहू कैसा अजीब सा नाम है? तुम अगर कुछ और नहीं बोलना चाहते तो जावी बोल सकते हो..!" जाह्नवी ने उसे घूरकर देखते हुए कहा, वह समझती थी कि विक्रम ने उसे जानू क्यों नहीं कहा।

"पर ऐसे तो हमारे नाम मिल जाएंगे न?" विक्रम चहकते हुए बोला।

"ओ मिस्टर! ज्यादा सयाने न बनो, मेरा नाम है जाह्नवी, तो जावी भी मेरा हुआ न?" जाह्नवी आँखे तरेरते हुए बोली।

"हाँ ठीक है!" विक्रम ने बोलते हुए ऊंचे वाले होंठ को निचले होंठ से दबाया।

"यहां बोर लग रहा है, चलो भाई के पास…!" जाह्नवी उठकर खड़ा होते हुए बोली।

"नहीं! उन दोनों को थोड़ी देर साथ रहने दो..! तुम चलो पास के गार्डन में बैठते हैं।" विक्रम ने खड़ा होते हुए कहा।

"क्यों?" जाह्नवी ने उससे पूछा।

"बस ऐसे ही… मेरे ख्याल से उन दोनों को अपना वक़्त मिलना चाहिए..!" विक्रम ने बेहद धीमे स्वर में कहा।

"इसका मतलब तुम…..!" जाह्नवी आश्चर्य से उसकी ओर देखने लगी।

"हाँ! निमय ने मुझे सबसे पहले बताया था, पर उसे ऐसा लगता था कि उसे तुम दोनों में से किसी एक का चुनाव करना होगा…!" कहते हुए विक्रम आगे बढ़ा, दोनो अब गेट के पास पहुंच गए थे।

"फिर..!" जाह्नवी ने जिज्ञासावश पूछा।

"फिर क्या वह हर बार तुम्हें चुनता था। इसलिए मैंने उससे डायरी लिखने का सुझाव दिया।" विक्रम ने आगे बताया।

"अच्छा तो वो तुम थे जिसने उससे डायरी लिखने को कहा, अरे हाँ! ये बात तो पहले पेज़ में मेंशन भी करा है भाई ने..!" जाह्नवी ने अपने सिर पर हाथ मारा।

"हाँ..! क्योंकि मैं जानता था वो जैसा सोचता है वैसा कभी न होगा, उसके पास हमेशा तुम दोनों भी रह सकती हो, वो तुमसे खुद बताता नहीं इसलिए यही तरीका बेस्ट लगा मुझे…!" विक्रम आगे बताने लगा।

"अच्छा..!" जाह्नवी ने संदेहात्मक स्वर में कहा।

"हाँ! क्योंकि मैं इतना तो जान चुका था कि तुम दोनों एक दूसरे के लिए सबकुछ हो, हालांकि तुम उसको लेकर ओवर पजेसिव हो पर इसका मतलब ये बिल्कुल नहीं कि उसकी खुशियों को उसके पास आने से रोकोगी। इतना मुझे यकीन था, और मुझे खुशी है कि मेरा यकीन सच्चा निकला।" विक्रम खुश होता हुआ बोला।

"हूँ…!" जाह्नवी ने सिर हिलाते हुए जवाब दिया, अब तक दोनों हॉस्पिटल के गार्डन में आ चुके थे। "और तुम अपनी दोस्ती निभाने के लिए उसके भाई तक बन गए? पर फरी के भाई कब बने..?" जाह्नवी ने कब से अपने मन में दबे सवाल को पूछा।

"हाँ…! जब तुमने फरी के साथ वैसा व्यवहार किया तो मुझे बहुत बुरा लगा, मैंने निमय को समझाने की कोशिश की पर वह नहीं समझा, मैं सारी रात इस बारे में सोचता रहा, तो मेरे पास बस यही उपाय आया वैसे भी मेरी माँ को बेटी चाहिए थी और मेरी नजर में उससे अच्छी कोई नहीं थी..!" विक्रम ने उसकी जिज्ञासा शांत करते हुए आगे बताया। "मैं निमय को इस बारे में बताना चाहता था पर तब जब तुम फरी को अच्छे से समझो, पर तुमने फरी को फिर गलत समझा….!" अचानक विक्रम का स्वर भारी हो गया। जाह्नवी की नजरें झुक गयी।

"पता है शिक्षा ने भाई को हर तरह से पाने की कोशिश की, जाने हो क्यों? ताकि वो मुझे उससे दूर करके दर्द दे सके, अपने अभिमान को बनाये रखने के लिए। मैं एक मिडिल क्लास फैमिली से बिलोंग करती हूँ विक! मेरे लिए मेरा परिवार ही मेरा सबकुछ है, मेरे पापा मेरे हीरो और मेरा भाई मेरी जान..! इनसे दूर होने का ख्याल भी मुझे इनसिक्योर कर देता है, तुम ही बताओ मैं क्या करती!" जाह्नवी के आँखों में आँसू थे। वह सिर झुकाए हुए बोले जा रही थी।

"इट्स ओके जावी! मैं सब समझ रहा हूँ। पर सभी दौलत वाले दिल के गरीब तो नहीं होते न? सबको एक ही पैमाने में आंकना गलत होता है।" विक्रम ने रूखे स्वर में कहा।

"तुम अब भी गुस्सा हो न! उस दिन जो हुआ उसके लिए? आई एम सो सॉरी विक, पर मैं कभी कभी बचपना कर ही देती हूँ, भाई को लेकर अक्सर ऐसी बेवकूफियां करती रहती हूँ, जिनसे खुद भाई को भी तकलीफ होता है।" जाह्नवी ने मुँह लटकाए हुए कहा।

"बस न..! सारी उमर झेल लेंगे…! पर अब से तुम खुद को ऐसे कुछ नहीं बोलोगी समझी..!" विक्रम ने उसे प्यार से डांटते हुए कहा।

"हूँ..!" जाह्नवी बेहद भावुक हो चुकी थी।

"सच कहूं तो तुम्हारी वजह से मुझे मेरी बहन मिली…" विक्रम ने मुस्कुराते हुए कहा।

"और तुम्हारी वजह से मुझे मेरी भाभी.. और एक बहुत अच्छी दोस्त भी..!" फरी ने भी मुस्कुराते हुए कहा।

"पता है, वो मेरी अपनी मौसी की बेटी है, जिसके बारे में मैं अब तक नहीं जानता था! मुझे खुद नहीं पता वह क्या महसूस कर रही है, पर मैं इतना बहुत अच्छे से जानता हूँ कि निमय के पास मेरी बहन बिल्कुल सेफ रहेगी!" विक्रम खुशी से चहकता हुआ बोला।

"हूँ.!" जाह्नवी ने मुस्कुराकर कहा।

"भगवान करें कि वो दोनों अपने दिल की बात एक दूसरे से कह पाएं…!" विक्रम आसमान की ओर देखता हुआ बोला।

"अगर न भी बोल पाए तो हम किस लिए हैं! अब से हम एक टीम हैं, जो इन दोनों प्रेमियों को पक्का वाला लैला मजनू बनाने तक जी तोड़ संघर्ष करेंगे..!" जाह्नवी ने भाषण देने वाले स्टाइल में कहा।

"क्या..? हाहाहा…" यह सुनते ही विक्रम जोर जोर से हँसने लगा। "चलो अब मुझे घर जाना चाहिए…!" विक्रम ने कहा। दोनों हॉस्पिटल की बिल्डिंग की ओर बढ़े।

क्रमशः…


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2 Comments

Pamela

15-Feb-2022 01:26 PM

बहुत ज्यादा अच्छी कहानी।

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Thank you so much

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